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Ekadashi vrat Katha एकादशी व्रत कथा | Ekadashi Vrat Ki Katha एकादशी व्रत की कथा | Ekadashi ki Katha

 Yogini Ekadashi Katha : योगिनी एकादशी व्रत कथा- पद्मपुराण के अनुसार स्वर्गलोक में इन्द्र की अलकापुरी में यक्षों का राजा कुबेर रहता था। वह भगवान शिव का भक्त था और उनके लिए रोजाना हेम नामक माली अद्र्धरात्रि को फूल लेने मानसरोवर जाता था। माली सुबह राजा के पास जाता और उसे फूल दे देता।




योगिनी एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहा करता था. जो कि परम शिव भक्त था और रोजाना नियमानुसार शिव जी का पूजन किया करता था. पूजा के लिए उसके यहां हेम नामक एक माली फूल देने आता था. हेम की पत्नी विशालाक्षी बहुत ही सुंदर थी. एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा. इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा. अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया. सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा. यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया.


हेम माली राजा के भय से काँपता हुआ उपस्थित हुआ. राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इस‍लिए मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा.’ कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया. भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया. उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई. मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा.


घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था. हेम माली वहाँ जाकर उनके पैरों में पड़ गया. उसे देखकर मारर्कंडेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई. हेम माली ने सारा वृत्तांत कह ‍सुनाया. यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूँ. यदि तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएँगे. यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया. मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया. हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा.


एकादशी व्रत कितने बजे खोलना चाहिए?

एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद इसका पारण किया जाता है. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना जरूरी होता है. अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए. द्वादशी तिथि के अंदर पारण न करना पाप करने के समान होता है.



एकादशी व्रत में फलाहार क्या करें?

फलाहार व्रत करने वाले को गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए, वो आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन कर सकता है, जो भी फलाहार लें, भगवान को भोग लगाकर और तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।


एकादशी व्रत में हम क्या खाते हैं?

एकादशी व्रत भगवान विष्णु के लिए समर्पित होता है. इस व्रत का पालन 24 घंटे किया जाता है. अपरा एकादशी में साधक साबुदाना, बादाम, नारियल, शकरकंद, आलू, मिर्च सेंधा नमक, राजगीर का आटा, चीनी आदि खा सकते है, यह एकादशी के नक्तभोजी व्रत नियम कहलाते हैं.



क्या एकादशी को बाल धोने चाहिए?

हिंदू धर्म में गुरुवार का दिन बृहस्पति देव को समर्पित माना जाता है। ऐसे में इस दिन बाल धोने से आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है। साथ ही इस दिन बालों में तेल भी न लगाएं। वहीं, एकादशी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन बाल धोना या कटवाना बिलकुल शुभ नहीं माना जाता


एकादशी के दिन भगवान को क्या चढ़ाना चाहिए?

एकादशी पर श्रीकृष्ण और तुलसी पूजा

पूजा में भगवान को खासतौर से तुलसी और तिल चढ़ाना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर तुलसी के पौधे की पूजा करें और उसमें जल चढ़ाएं। इसके बाद भगवान विष्णु को केले और हलवे का भोग लगाएं। विष्णुजी को पीले वस्त्र चढ़ाएं।

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