Ekadashi vrat Katha एकादशी व्रत कथा | Ekadashi Vrat Ki Katha एकादशी व्रत की कथा | Ekadashi ki Katha
एकादशी व्रत कथा, एकादशी की कहानी,
कामिका एकादशी व्रत कथा
एक समय की बात है, एक गांव में एक बहुत शक्तिशाली क्षत्रिय निवास करता था. अपनी शक्ति और बल पर उसे क्षत्रिय को गर्व था, लेकिन उसके धार्मिक स्वभाव के बावजूद, अहंकार उसके मन में घर कर चुका था. वह हर दिन भगवान विष्णु की पूजा करता और उनकी उपासना में लीन रहता था. एक दिन, वह किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए यात्रा पर निकला. रास्ते में उसकी भेंट एक ब्राह्मण से हो गई. दोनों में किसी बात पर विवाद हो गया जिसके बाद क्षत्रिय ने ब्राह्मण के साथ हाथापाई शुरू कर दी. ब्राह्मण अपनी दुर्बलता के कारण क्षत्रिय के आघात को सहन नहीं कर पाया और उसकी मृत्यु हो गई.
ब्राह्मण की मृत्यु से क्षत्रिय हक्का बक्का रह गया. उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह बहुत पछताया. उसकी यह स्थिति गांव में चर्चा का विषय बन गई. क्षत्रिय युवक ने गांव वालों से क्षमा याचना की और ब्राह्मण का अंतिम संस्कार खुद करने का वचन दिया. लेकिन पंडितों ने अंतिम क्रिया में शामिल होने से इंकार कर दिया. तब उसने ज्ञानी पंडितों से अपने पाप को जानना चाहा, तो पंडितों ने उसे बताया कि उसे ब्रह्म हत्या दोष लग चुका है, इसलिए हम अंतिम क्रिया के ब्राह्मण भोज में आपके घर भोजन नहीं कर सकते हैं. यह सुनकर क्षत्रिय ने ब्रह्म हत्या दोष के प्रायश्चित का उपाय पूछा.
पंडितों ने कहा कि, जब तक वह सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा नहीं करता, और ब्राह्मणों को भोजन नहीं कराता और दान दक्षिणा नहीं देता तब तक वह ब्रह्म हत्या दोष से मुक्त नहीं हो सकता है. क्षत्रिय ने ब्राह्मण के अंतिम संस्कार के बाद, पंडितों की सलाह मानते हुए, कामिका एकादशी के दिन पूरी श्रद्धा और विधि के अनुसार भगवान विष्णु की पूजा की, फिर उसने ब्राह्मणों को भोजन कराया और दान दक्षिणा भी दी. इस तरह, भगवान विष्णु की कृपा से उसे क्षत्रिय ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति मिली.
कामिका एकादशी व्रत कथा
एक समय की बात है, एक गांव में एक बहुत शक्तिशाली क्षत्रिय निवास करता था. अपनी शक्ति और बल पर उसे क्षत्रिय को गर्व था, लेकिन उसके धार्मिक स्वभाव के बावजूद, अहंकार उसके मन में घर कर चुका था. वह हर दिन भगवान विष्णु की पूजा करता और उनकी उपासना में लीन रहता था. एक दिन, वह किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए यात्रा पर निकला. रास्ते में उसकी भेंट एक ब्राह्मण से हो गई. दोनों में किसी बात पर विवाद हो गया जिसके बाद क्षत्रिय ने ब्राह्मण के साथ हाथापाई शुरू कर दी. ब्राह्मण अपनी दुर्बलता के कारण क्षत्रिय के आघात को सहन नहीं कर पाया और उसकी मृत्यु हो गई.
ब्राह्मण की मृत्यु से क्षत्रिय हक्का बक्का रह गया. उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह बहुत पछताया. उसकी यह स्थिति गांव में चर्चा का विषय बन गई. क्षत्रिय युवक ने गांव वालों से क्षमा याचना की और ब्राह्मण का अंतिम संस्कार खुद करने का वचन दिया. लेकिन पंडितों ने अंतिम क्रिया में शामिल होने से इंकार कर दिया. तब उसने ज्ञानी पंडितों से अपने पाप को जानना चाहा, तो पंडितों ने उसे बताया कि उसे ब्रह्म हत्या दोष लग चुका है, इसलिए हम अंतिम क्रिया के ब्राह्मण भोज में आपके घर भोजन नहीं कर सकते हैं. यह सुनकर क्षत्रिय ने ब्रह्म हत्या दोष के प्रायश्चित का उपाय पूछा.
पंडितों ने कहा कि, जब तक वह सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा नहीं करता, और ब्राह्मणों को भोजन नहीं कराता और दान दक्षिणा नहीं देता तब तक वह ब्रह्म हत्या दोष से मुक्त नहीं हो सकता है. क्षत्रिय ने ब्राह्मण के अंतिम संस्कार के बाद, पंडितों की सलाह मानते हुए, कामिका एकादशी के दिन पूरी श्रद्धा और विधि के अनुसार भगवान विष्णु की पूजा की, फिर उसने ब्राह्मणों को भोजन कराया और दान दक्षिणा भी दी. इस तरह, भगवान विष्णु की कृपा से उसे क्षत्रिय ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति मिली.
एकादशी व्रत के पीछे की कहानी क्या है?
पौराणिक मान्यता है कि पाँच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था और वैकुंठ को गए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ। सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से अधिकमास की दो एकादशियों सहित साल की 25 एकादशी व्रत का फल मिलता है। जहाँ साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है
एकादशी व्रत कितने रखने चाहिए?
एकादशी का व्रत कितने प्रकार से ...
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन प्रभु नारायण की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। प्रत्येक महीने में दो बार एकादशी का व्रत पड़ता है एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। मान्यताओं के अनुसार, जो भी जातक एकादशी का व्रत रख विष्णु जी और मां लक्ष्मी की उपासना करता है उसका जीवन खुशहाल और समृद्ध बन जाता है।
एकादशी व्रत पहली बार कैसे शुरू करें?
एकादशी तिथि के दिन सुबह प्रात:काल उठकर गंगा नदी में या घर पर नहाने के पानी में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए. उसके बाद साफ कपड़े धारण करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद घर के मंदिर में जाकर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और श्रीकृष्ण के दामोदर स्वरूप का विधि विधान से पूजन करें.
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